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रवांई घाटी के साहित्यकारों की पुस्तकें प्रकाशित होने पर क्षेत्र के लोगों सहित शुभचिंतकों ने दी बधाई 

पत्रिका न्यूज नेटवर्क 

पुरोला,Uttarkashi: रवांई घाटी के दो प्रसिद्ध साहित्यकारों की पुस्तकें प्रकाशित होने पर यहां क्षेत्र के गणमान्य लोगों सहित शुभचिंतकों ने हर्ष व्यक्त करते हुए उन्हे बधाई दी है।

देश, विदेश में ख्यातिप्राप्त वरिष्ठ साहित्यिकार महावीर रवांल्टा द्वारा संकलित रवांई क्षेत्र की लोककथाओं के रूप में प्रकाशन के खाते में लोक साहित्य का एक और नगीना “चल मेरी ढोलक ठुमक ठुम” जुड़ गया है। वहीं वरिष्ठ साहित्यकार खिलानंद बिजल्वाण की प्रकाशित पुस्तक “भाग्य के खेल” भी साहित्य जगत में शामिल हुई है।

उत्तराखण्ड का रवांई क्षेत्र अपनी समृद्ध लोक संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। रवांई क्षेत्र के लोग अपनी वीरता और साहस के लिए भी जाने जाते हैं। प्रसिद्ध पोखू देवता और गजू मलारी की गाथाएं रवांई क्षेत्र के लोकमानस में बसी हुई हैं। प्रसिद्ध तिलाड़ी कांड भी रवांई क्षेत्र के तिलाड़ी मैदान में ही हुआ था।

महावीर रवांल्टा साहित्य जगत में इसी रवांई घाटी से निकलकर देश दुनिया में प्रतिनिधित्व करते हैं। अब तक साहित्य की विभिन्न विधाओं में तीन दर्जन से अधिक पुस्तकें लिख चुके महावीर रवांल्टा स्थानीय लोक साहित्य को दुनिया के फलक पर ले आये हैं।

उनके लिखे नाटकों और कहानियों का मंचन व फिल्मांकन भी होता रहा है। प्रस्तुत पुस्तक “चल मेरी ढोलक ठुमक ठुम” में रवांई क्षेत्र की कुल छियालीस लोककथाएं संकलित हैं। महावीर रवांल्टा को उत्तराखंड भाषा संस्थान का गोविन्द चातक पुरस्कार भी मिल चुका है।

वरिष्ठ साहित्यकार खिलानंद बिजल्वाण की अभी तक कई पुस्तकें व कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।उन्होंने सामाजिक सरोकारों से भी सफलता के नए आयाम स्थापित किए हैं। वयोवृद्ध साहित्यकार खिलानंद बिजल्वाण पांच बार (25वर्ष) पोरा ग्राम पंचायत के ग्राम प्रधान भी रहे हैं।

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