श्रीमद्भागवत कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बताती है : आचार्य सुरेश उनियाल

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
पुरोला,Uttarkashi : भागवत कथा के दूसरे दिन शुकदेव की वंदना के बारे में वर्णन करते हुए कथाव्यास आचार्य सुरेश उनियाल ने श्रीमद्भागवत की अमर कथा एवं शुकदेव जी महाराज के जन्म का विस्तार से वर्णन किया। कैसे भगवान श्रीकृष्ण ने शुकदेव महाराज को धरती पर भेजा भागवत कथा गायन करने को, ताकि कलियुग के लोगों का कल्याण हो सके। भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है।
नगर के प्रसिद्ध नागराज मंदिर में यमुना गोलोक धाम के तत्वाधान में चल रही भागवत् कथा के द्वितीय दिवस यमुना पुत्र आचार्य सुरेश उनियाल ने कहा कि गुरू की महत्ता हमारे जीवन में अनुपम है क्योंकि गुरू के बिना हम जीवन का सार ही नहीं समझ सकते हैं। लेकिन हमेशा इस बात का सदैव ही ध्यान रखना चाहिए कि गुरू के समक्ष चंचलता नहीं करनी चाहिए और सदा ही अल्पवासी होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जितनी आवश्यकता है उतना ही बोलें और जितना अधिक हो सके गुरू की वाणी का श्रवण करें।
उन्होंने कहा कि गुरू चरणों की सेवा का अवसर मिलना परम सौभाग्य होता है, जो अनमोल है। उन्होंने कहा कि मुझे भी ठाकुरजी की कृपा से गुरूसेवा का दायित्व मिला था, लेकिन उस समय सेवाभाव का ज्ञान नहीं था और अब जब ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी है तो गुरू सेवा का अवसर नहीं हैं। इसलिए गुरू सेवा को समर्पित भाव से करना और उनका आदेश का पालन सदा ही करना चाहिए। गुरू की महिमा अपार है और उनकी करूणा अद्भुत है कब किस पर अनुग्रह हो जाएं। उन्होंने धार्मिक ग्रंथो में वर्णित अवतारों के बारे में बताया कि कहीं पर 24 तो कहीं पर दसावतार की कथा बताई जाती है लेकिन अवतारों की संख्या की गणना संभव नहीं है, क्योंकि जितने भक्त होते हैं उतने ही अवतार होते हैं।
उन्होंने कहा कि संसार मिथ्या है केवल परमात्मा ही सत्य है। जीव को संसार की ओर नहीं परमात्मा की ओर भागना चाहिए। संसार की ओर भागने से मनुष्य माया जाल में फंसाता चला जाता है और परमात्मा की ओर भागने से जीव का कल्याण हो जाता है।