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महावीर रवांल्टा की अब तक 39 पुस्तकें साहित्य जगत में शामिल, रवांल्टी भाषा को पहचान दिलाने में भी जुटे हुए हैं रवांल्टा

पत्रिका न्यूज नेटवर्क 

पुरोला,Uttarkashi. साहित्य की विभिन्न विधाओं के पुरोधा महावीर रवांल्टा की अब तक 39 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। रवांल्टा वर्षों से हिन्दी साहित्य के साथ ही रवांई क्षेत्र के लोक साहित्य के संरक्षण तथा उसे अपनी कलम व विभिन्न माध्यमों से प्रचारित व प्रसारित करने के साथ ही रवांल्टी भाषा को पहचान दिलाने में भी जुटे हुए हैं। इनकी रवांल्टी की पहली कविता ‘दरवालु’ 7 जनवरी सन् 1995 को ‘जन लहर’ में प्रकाशित हुई थी।

10 मई 1966 को उतरकाशी जिले के सुदूर सरनौल गांव में जन्मे महावीर रवांल्टा साहित्य की विभिन्न विधाओं में सृजन करते हुए अब तक 39 पुस्तकें हिन्दी साहित्य जगत को दे चुके हैं। रंगमंच एवं लोक साहित्य में गहरी रुचि के कारण उन्होंने रंग लेखन के साथ ही अनेक नाटकों का निर्देशन व अभिनय भी किया है। साहित्य के क्षेत्र में सराहनीय योगदान के लिए देशभर की अनेक प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा उन्हें पुरस्कृत व सम्मानित किया जा चुका है। उनके कथा साहित्य पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में लघुशोध एवं शोध प्रबंध प्रस्तुत हो चुके हैं। आकाशवाणी व दूरदर्शन से उनकी रचनाओं का प्रसारण होता रहा है। उनकी कहानियों- ‘ खुली आंखों में सपने’ व ‘ ननकू नहीं ‌रहा’ पर आधारित नाटकों का राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की संस्कार रंग टोली ,कला दर्पण,मांडी विद्या निकेतन (दिल्ली)व विशेष बाल श्रमिक विद्यालय (अगवाल,खुर्जा)द्वारा नाट्य मंचन हो चुका है।भाषा- शोध एवं प्रकाशन केन्द्र वडोदरा (गुजरात) के भारतीय भाषा लोक  सर्वेक्षण , उत्तराखंड भाषा संस्थान के भाषा सर्वेक्षण, पहाड़ (नैनीताल) के बहुभाषी शब्दकोश के लिए रवांल्टी पर काम कर चुके महावीर रवांल्टा को ही रवांल्टी के पहले कविता संग्रह ‘ गैणी जण आमार सुईन’ को सामने लाने का श्रेय भी जाता है। रवांल्टा इन दिनों अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र आराकोट में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

वर्षों से रवांई क्षेत्र के लोक साहित्य के संरक्षण तथा उसे अपनी कलम व विभिन्न माध्यमों से प्रचारित व प्रसारित करने के साथ ही रवांल्टी भाषा को पहचान दिलाने में जुटे जाने-माने साहित्यकार महावीर रवांल्टा रवांई क्षेत्र की कुछ लोकथाओं को ‘चल मेरी ढोलक ठुमक ठुम’ लोककथा संग्रह के माध्यम से पाठकों के सामने लाए हैं। पुस्तक को ‘समय साक्ष्य’ देहरादून ने प्रकाशित किया है।अस्सी के दशक से पत्रकारिता से अपने लेखन की शुरुआत करने वाले महावीर रवांल्टा ने ‘हिमालय और हम'(टिहरी गढ़वाल)’जन लहर (देहरादून)’मसूरी टाइम्स'(मसूरी ‘उतरीय आवाज'(उतरकाशी) से जुड़कर इनके साथ ही देशभर की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से रवांई क्षेत्र की संस्कृति, साहित्य व समाज के ताने-बाने को उजागर करते रहे हैं।’दैत्य और पांच बहिनें, ‘ढेला और पता’,’ उतराखण्ड की लोककथाएं ‘ के साथ ही रवांई क्षेत्र की प्रसिद्ध लोकगाथा ‘गजू-मलारी’ पर आधारित ‘एक प्रेमकथा का अंत’ व लोककथा ‘रथ देवता’ पर ‘सफेद घोड़े का सवार’ जैसे चर्चित नाटक रचा चुके हैं जो अनेक राज्यों में पुरस्कृत भी हुए हैं।’पोखू का घमण्ड’ लोककथाओं पर आधारित बाल नाटकों का संग्रह है।रवांल्टी भाषा की बात करें तो भाषा -शोध एवं प्रकाशन केन्द्र वडोदरा (गुजरात)के भारतीय भाषा लोक सर्वेक्षण, उत्तराखण्ड भाषा संस्थान के भाषा सर्वेक्षण,’पहाड'(नैनीताल) के बहुभाषी शब्दकोश’ झिक्कल काम्ची उडायली’ में आपने रवांल्टी पर कार्य किया। जिसमें उत्तराखण्ड की तेरह भाषाएं शामिल हैं।

हिन्दी साहित्य जगत को विभिन्न विधाओं में अनेक रचनाएं देने वाले महावीर रवांल्टा ने नब्बे के दशक में पहली बार रवांल्टी में कविता लेखन की शुरुआत की।रवांल्टी की इनकी पहली कविता ‘दरवालु’ 7 जनवरी सन् 1995 के ‘जन लहर’ में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद रवांल्टी में कविता लेखन के साथ ही आकाशवाणी व दूरदर्शन के अलावा विभिन्न मंचों पर आपने उसे प्रस्तुत करते हुए उसे एक खास पहचान दी। इतना ही नहीं आपने रवांल्टी में पहली कहानी ‘इके रौनु कि तेके’ व नाटक ‘दीपा की अड़ी’ से भी एक नई शुरुआत को अंजाम दिया है। साहित्य में उल्लेखनीय अवदान के लिए आपको देशभर से अनेक सम्मान मिल चुके हैं तथा विभिन्न विश्वविद्यालयों में आपके साहित्य पर लघु शोध व शोध प्रबंध प्रस्तुत हो चुके हैं। कुछ शोधार्थी आज भी शोध कर रहे हैं। रवांई क्षेत्र के बाजगी यानि जुमरिया के जीवन पर केन्द्रित आपकी कहानी ‘खुली आंखों में सपने’ का राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली की संस्कार रंग टोली,मांडी विद्या निकेतन, ‘कला दर्पण’ द्वारा नाट्य मंचन हो चुका है। आपकी लघुकथा ‘तिरस्कार’ पर लघु फिल्म का भी निर्माण हो चुका है। महावीर रवांल्टा अनेक नाटकों के लेखन के साथ ही उनमें अभिनय और निर्देशन भी कर चुके हैं।

रवांल्टी में दीर्घकालीन उत्कृष्ट साहित्य सृजन एवं अनवरत साहित्य सेवा के लिए उत्तराखण्ड भाषा संस्थान के प्रतिष्ठित उत्तराखण्ड साहित्य गौरव सम्मान-गोविन्द चातक पुरस्कार-2022 से भी आपको सम्मानित किया जा चुका है।

‘चल मेरी ढोलक ठुमक ठुम में रवांई क्षेत्र की छियालिस लोककथाओं को शामिल किया गया है। महावीर रवांल्टा उत्तराखण्ड सरकार द्वारा लोकभाषा एवं बोली संवर्द्धन परिषद व उत्तराखण्ड भाषा संस्थान में मनोनीत सदस्य भी रहे हैं।’गैणी जण आमार सुईन’ व ‘छपराल’ रवांल्टा की रवांल्टी कविता संग्रह है।

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