
पत्रिका ब्यूरो
पुरोला। क्षेत्र का प्रसिद्ध कमलेश्वर महादेव मंदिर अटूट आस्था का केंद्र है। यहां आजकल सावन माह में भगवान आशुतोष को जलाभिषेक करने हेतु श्रद्धालुओ का तांता लगा हुआ है। सोमवार को तो श्रद्धालुओ की यहां भारी भीड़ देखने को मिल रही है। यहां जो भी मन्नत मांगता है पूरी होती है।

निसंतान दंपत्ति यहां शिवरात्री में अनुष्ठान कर संतान का वरदान प्राप्त करते है। संतान प्राप्ति हेतु अनुष्ठान करने यहां उत्तराखण्ड के अलावा बाहरी प्रदेशों से भी दंपत्ति यहां पहुंचते है। पुराणों में उल्लेख है कि त्रेता युग में जब रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की जा रही थी तो हनुमान जी महाराज को कैलाश से शिवलिंग लाने हेतु भेजा गया था जिसमें यह शर्त थी कि कैलाश से लौटते समय शिवलिंग को कहीं भी जमीन पर नही रखना है। कैलाश से शिवलिंग लेकर आ रहे हनुमान जी महाराज को यहां एक सरोवर दिखाई दिया, जिसमें कमल खिल्ले हुए थे। हनुमान जी भूलवश शिवलिंग को जमीन पर रखकर सरोवर का पानी पीने चले गए। उसके बाद उनको स्मरण हुआ कि शिवलिंग तो नीचे जमीन पर रखना ही नही था। इसके बाद हनुमान जी महाराज पुनः कैलाश गए और वहां से दूसरा शिवलिंग लेकर रामेश्वरम पहुंचे। तब से यहां इस शिवलिंग की स्थापना मानी जाती है।

रामासिंराई एवं कमलसिंराई की जीवनदायिनी कमल नदी का उद्गम स्थल भी यही सरोवर है। यहां ढांचागत सुविधाएं न होने के कारण श्रद्धालुओ को परेशानी का सामना करना पड़ता है। मंदिर समिति के अध्यक्ष बृजमोहन चौहान ने बताया कि 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने रेवड़ी से कमलेश्वर महादेव मंदिर के लिए 3 किमी मोटर मार्ग की घोषणा की थी जिसकी स्वीकृति भी मिल चुकी है लेकिन यह प्रकरण वन विभाग में लंबित पड़ा हुआ है।